तार हृदय के....
गीत(16/14)तार हृदय के.....
तार हृदय के जब भी जुड़ते,
दीप प्रेम का जलता है।
जब अधरों को छूए मुरली,
सुर अति मधुर निकलता है।।
कली-भ्रमर का मिलन देखकर,
ऋतु वसंत मुस्काती है।
वर्षा-जल को पाकर सरिता,
मस्ती में इठलाती है।
गोरी-गागर,पनघट-पीपल,
सब में प्रेम झलकता है।।
जब अधरों को छूए मुरली,
सुर अति मधुर निकलता है।।
कहीं दूर से आवाज़ें जब,
कानों से टकरातीं हैं।
पिया-मिलन की मीठी यादें,
बार-बार तड़पातीं हैं।
उर जब निशि-वासर के मिलते,
चंद्र-पुष्प नभ खिलता है।।
जब अधरों को छूए मुरली,
सुर अति मधुर निकलता है।।
दीपक-बाती मिल आपस में,
जग में ज्योति जलाते हैं।
शलभ दीप से मिल जलकर ही,
सुख अद्भुत झट पाते हैं।
अपने को ही फाड़ अवनि-उर,
नित-नित अन्न उगलता है।।
जब अधरों को छूए मुरली,
सुर अति मधुर निकलता है।।
योग-वियोग सत्य है यद्यपि,
पर,सुख प्रचुर मिलन देता।
लेन-देन की इस बस्ती में,
त्याग नहीं कुछ भी लेता।
मिलन-भाव,सद्भाव-जगत में,
सूरज कभी न ढलता है।।
जब अधरों को छूए मुरली,
सुर अति मधुर निकलता है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372